गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
भावार्थ:
गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है। गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है, उन सद्गुरु को प्रणाम।
गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है। गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है, उन सद्गुरु को प्रणाम।
जिस प्रकार एक बीज के अंकुरित होने से लेकर उसके वृक्ष बनने तक कई चरण होते है, (जैसे- बीज, जड़, तना, साखे, फल आदि) वैसे ही एक इंसान का जीवन भी कई चरणों से होकर गुजरता है और जीवन के हर चरण में जाने अनजाने कितने ही गुरु हमे मिलते है। जो जीवन के हर उतार-चढ़ाव की हमे सिख देते है, जो जीवन मे आने वाली हर कठिनाइयों से लड़ने और संघर्ष का हौसला देते है, हमे सिखाते है जबतक हम खुद हार नही मान लेते तब तक हमे कोई हरा नही सकता।
जैसे जमीन में लगे एक बीज को हम सींच सींच कर वजूद बनाते है, वैसे ही हमारे पहले गुरु जो माता-पिता के रूप में होते है हमे प्यार, संस्कार और ऐसे ही कई गुणों से हमे सींचते है और तब हम अपना पहला कदम रखते है दुनिया की तरफ और तब हमारी मुलाकात हमारे दूसरे गुरु से होती है, जिस प्रकार एक बीज सींचते सींचते एक पौधे का रूप लेता है तो हम उसे ऐसे ढालते है कि वो हमेशा सीधा खड़ा रहे।
वैसे ही ये हमे दुनियारूपी एक मंच के लिए तैयार करते है। जो हमे सिखाते है कि जिंदगी एक इम्तिहान है, यहा हर कदम पर परीक्षा देनी होती है, हर कदम पर हमें खुद को खुद से थोड़ा और आगे निकलने का मौका मिलता है इसलिए हर परीक्षा हमे पूरी जिम्मेदारी के साथ देनी चाहिए फिर चाहे उसमे हार हो या जीत...
वैसे ही ये हमे दुनियारूपी एक मंच के लिए तैयार करते है। जो हमे सिखाते है कि जिंदगी एक इम्तिहान है, यहा हर कदम पर परीक्षा देनी होती है, हर कदम पर हमें खुद को खुद से थोड़ा और आगे निकलने का मौका मिलता है इसलिए हर परीक्षा हमे पूरी जिम्मेदारी के साथ देनी चाहिए फिर चाहे उसमे हार हो या जीत...
उपाध्यायान् दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता।
सहस्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते।।
(मनुस्मृति)
सहस्रं तु पितृन् माता गौरवेणातिरिच्यते।।
(मनुस्मृति)
भावार्थ:
दस उपाध्यायों से बढ़कर एक आचार्य होता है, सौ आचार्यों से बढ़कर पिता होता है और पिता से हजार गुणा बढ़कर माता गौरवमयी होती है।
दस उपाध्यायों से बढ़कर एक आचार्य होता है, सौ आचार्यों से बढ़कर पिता होता है और पिता से हजार गुणा बढ़कर माता गौरवमयी होती है।
इसी दौरान हम जीवन के एक और चरण में जाते है, जैसे एक पौधा बढ़ने के बाद अपनी शाखाएं फैलाना शुरू करता है, वैसे ही हम अब अपने दायरों को बढ़ाते है, और दोस्त और दोस्ती के रिश्तों में बंधते है। ये वो गुरु जो हमे सिखाते है कि कई बार हम जो अकेले रहकर नही कर पाते उसे सब मिलकर बड़े ही आराम से कर लेते है, जो हमे सिखाते है कि जिंदगी को जिंदगी कैसे बनाई जाती है।
और फिर जैसे एक पौधा पेड़ बन जाने और अपनी शाखाये फैलाने के बाद उनपर फल देकर सम्पूर्ण होता है, वैसे ही गृहस्थ जीवन मे पहुचकर हम अपनी जिंदगी के अगले गुरु से मिलते है जो हमे जिम्मेदारियां और सब्र रखना सिखाता है।
इस प्रकार हम पूरी जिंदगी सीखते है, और हर कदम हमे कोई न कोई गुरु मिलता है, जिससे जाने अनजाने हम सबकुछ सिखकर अपने जीवन को सम्पूर्ण करते है, तब जाकर कही हम मानव और मानवता भरे इस जीवन को एक मुकाम पर ले जाकर खत्म करते है, और यही हमे इंसान बनाता है और मरने के बाद भी हमे कही न कही जिंदा रखता है।
अब बस यही कहूंगा कि कोख से निकलकर पहली सांस से जो शिक्षक मुझे मिले उन सब को मेरा कोटि कोटि प्रणाम! मैं इतने शब्दो मे भी आप गुरुजनों की महानता नही समझा सका इसके लिए माफी चाहता हू। अंत में बस यही लिखूंगा-
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः !
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति !!
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति !!
भावार्थ :
जिन लोगो के पास विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म नहीं होता. ऐसे लोग इस धरती के लिए भार है और मनुष्य के रूप में जानवर बनकर घूमते है.
जिन लोगो के पास विद्या, तप, दान, शील, गुण और धर्म नहीं होता. ऐसे लोग इस धरती के लिए भार है और मनुष्य के रूप में जानवर बनकर घूमते है.
अभी टहनी हैं, पेड़ न हो सके
ReplyDeleteइतने भी काबिल नही हुए हैं हम
कि गुरु पे लिख सके
Happy Teachers Day
बहुत सही बात लिखे हो.. पर ये अपनी काबिलियत दिखाने के लिए नही बस अपने शब्दो से एक छोटा सा सम्मान लिखने की कोशिश थी, मुझे पता है कि झरने समुंदर की गहराइयों को कभी नाप नही सकते। फिर भी कोई गलती हुई हो तो माफ करना🙏
DeleteJisne likhna sikhaya usey is awasr pr ek tribute to apne lekh k madhyam se diya hi ja skata hai vihnu bhai. Bhisam ko bhi jrurt pdne pr apne guru se yuddh krna pada tha. Pr isme unke guru ka hisamman tha.
ReplyDeleteHaa bhai Bilkul... Guruwo ki mhanata to u ek choti si kahani me nhi sma skti h...
DeletePr fir bhi kosise to brabar krti rhni chahiye... Bolkr.. likhkr.. kyuki ye bhi unhe se mile hue gun h
DeleteBest of luck bro...
ReplyDeleteAur bhi lekh likhte rahna ....
Bilkul... Thank u
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