मुझे याद है आज भी वो आखिरी मुलाकात... वो आखिरी लम्हा जिसकी परछाई वक़्त के साथ धुंधली तो पड़ गयी पर वो चेहरा आज भी कभी कभी यादों की बारात लेकर मेरे सामने ऐसे आ जा ता है , जैसे ये सबकुछ अभी कल की बात हो । ... वो जब आयी थी उस रोज मुझसे मिलने तो उसके चेहरे के हाव-भाव कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। उसके माथे पर वो बिंदी भी नही थी जो वो अक्सर सिर्फ मेरे लिए लगाया करती थी। वो आंखों के काजल काफी हद तक धूल चुके थे, जैसे पूरी रात आंखों से बहते आंसुओ ने उसके गालो पर काली लकीरे बनाई होंगी। वो जुल्फों को समेटकर बांधे हुए थी जैसे, उसने अब वो बालो को छोड़ मुझे ना रिझाने का फैसला कर लिया हो। वो होठो की सुर्खियां बता रही थी कि अब उनपर वो खिलखिलाती मुस्कान नही दिखेगी जिन के आगे मैं हर बार हार जाता था। वो आयी और उसने कहा कि इस दुनिया की भीड़ में बहुत मिलेंगे जो तुम्हे मुझसे ज्यादा चाहेंगे, जो तुम्हारी खुशियो को और बढ़ाएंग