मैं माफी चाहता हू क्योंकि ये ब्लॉग थोड़ा लम्बा हो गया है पर आप सभी से एक ही बिनती है कि इसे आखिरी तक पढ़े - मैंने पढ़ी है एक किताब! जिसमे लिखे है जीवन सभ्यता के जवाब! जवाब देने वाले का होना भी एक सवाल था। सबको पता है ये मुद्दा राजनीति के लिए बेमिसाल था। मैं करता हु सादर प्रणाम अपने प्रभु को, जिन्होंने सिखायी जीवन जीने की सभ्यता हम सभी को! ये कहानी उनकी है जिन्हें जानते सब है, पर पहचानना कोई नही चाहता था। ये कहानी उनकी है जो रहते तो सबके दिलों में है, पर जुबान पर कोई नही लाना चाहता था। ये कहानी है उनकी जिन्हें मानने वालों ने उन्हें सरआंखो पर बैठा रखा है। ये कहानी उनकी है जिन्हें ना चाहने वालो ने आजतक, बस बहस का मुद्दा बना रखा है। ये कहानी उनकी है, जो पिछले 500वर्षों से अपनी ही जमीन पर अपना हक मांग रहे थे। ये कहानी उनकी है, जो ना जाने कितने ही बरसो से बस राजनेताओ के लिए राजनीति का मुद्दा बन कर रह गए