वैसे तो बनारस शहर अपने आप मे एक कहानी है । पर एक कहावत बहुत बिख्यात है कि बनारस में भगवान की भक्ति और इश्क़ की कई समानताये है। जैसे एक इंसान यहां बिना भक्ति किये नही रह सकता ऐसे ही इश्क़ भी उसे अपने ओर खिंच ही लेता है। कुछ ऐसी ही है ये कहानी :
घाट , गलियां और चौराहे !
बिना मोहब्बत के यहां कौन रह पाए ।
शाम यहां की सुहानी होती !
चिड़िया भी यहां की इश्क़ है करती ।
बिना मोहब्बत के यहां कौन रह पाए ।
शाम यहां की सुहानी होती !
चिड़िया भी यहां की इश्क़ है करती ।
मिलती थी वो भी अक्सर गंगा किनारे,
क्या खूबसूरत थी उसकी वो आंखें ,
सिर पर डालकर दुप्पट्टा माथे पर लगा टिका !
लगती थी जैसे हो कोई रूप अनोखा ।
क्या खूबसूरत थी उसकी वो आंखें ,
सिर पर डालकर दुप्पट्टा माथे पर लगा टिका !
लगती थी जैसे हो कोई रूप अनोखा ।
जितनी बार भी देख लु उसे मन नही था भरता!
वो इश्क़ था बनारस का जैसे हर भक्त भोलेनाथ से है करता !
वो इश्क़ था बनारस का जैसे हर भक्त भोलेनाथ से है करता !
कभी मैदागिन पर दिख जाती कभी विश्वनाथ की गलियों में !
कभी चाय की तफरी पर मिल जाती तो कभी भोले बाबा की रैलियों में !
कभी चाय की तफरी पर मिल जाती तो कभी भोले बाबा की रैलियों में !
एक रोज़ देखा था उसे रेशमी लिबाज़ में ,
खड़ी थी गोदौलिया पर जैसे किसी के इंतज़ार में ,
जब भी देखता था उसे अपने कामो को भूल जाता था !
वो लगती थी जैसे मैं हु किसी ख्वाब में ।
खड़ी थी गोदौलिया पर जैसे किसी के इंतज़ार में ,
जब भी देखता था उसे अपने कामो को भूल जाता था !
वो लगती थी जैसे मैं हु किसी ख्वाब में ।
जब सोचा कि बात करते है उस मेहताब से ,
ना जाने कहा से हिम्मत आयी,
शायद ऐसी हिम्मत थी बनारस के हर इंसान में !
तभी तो कहते है, कि इश्क़ बहता है बनारस के हर एहसास में ।
ना जाने कहा से हिम्मत आयी,
शायद ऐसी हिम्मत थी बनारस के हर इंसान में !
तभी तो कहते है, कि इश्क़ बहता है बनारस के हर एहसास में ।
बात हुई मुलाकात हुई शुरू हुई मोहब्बत की पारी ,
हाथ पकड़ साथ मे घूमती थी वो अस्सी , बी एच यू और लंका की गलियां सारी ।
सादगी बेमिसाल थी उसकी और हसी लाजवाब थी !
जब भी मिलती थी लगता था जैसे हो कोई भरी बोतल शराब की ।
हाथ पकड़ साथ मे घूमती थी वो अस्सी , बी एच यू और लंका की गलियां सारी ।
सादगी बेमिसाल थी उसकी और हसी लाजवाब थी !
जब भी मिलती थी लगता था जैसे हो कोई भरी बोतल शराब की ।
प्यार का खुमार था या बनारस का रंग,
जब भी मिलता था उससे बढ़ जाती थी दिल की तरंग ,
वो घाट थी वो शाम थी , वही मेरे इश्क़ का इज़हार थी !
उसके हाथों को पकड़ लगता था मन मे जैसे उड़ रही हो कोई पतंग ।
जब भी मिलता था उससे बढ़ जाती थी दिल की तरंग ,
वो घाट थी वो शाम थी , वही मेरे इश्क़ का इज़हार थी !
उसके हाथों को पकड़ लगता था मन मे जैसे उड़ रही हो कोई पतंग ।
कुछ कहता उससे पहले ही सब समझ जाती थी वो ,
बिना कुछ कहे ही कई बार आंखों से सब समझा जाती थी वो ,
वो बनारस के घाटो जैसी शांत और सुकून भरी थी !
मेरे नाराज़ होने पर भी बस मुस्कुरा के मुझे मना लेती थी वो ।
बिना कुछ कहे ही कई बार आंखों से सब समझा जाती थी वो ,
वो बनारस के घाटो जैसी शांत और सुकून भरी थी !
मेरे नाराज़ होने पर भी बस मुस्कुरा के मुझे मना लेती थी वो ।
एक रोज़ ना जाने कैसा ठहराव आया,
जैसे बारिश के बाद गंगा किनारे सैलाब आया ।
वो कह के गयी थी आएगी मिलने ,
पर उसकी जगह उसका पैगाम आया ।
कल रास्तो पर चलते हुए किसी गाड़ी से टकरा गई थी वो ,
बेवफा नही थी किस्मत से हार गई थी वो !
पर मौत के बाद भी एक साया साथ होगा उसका ,
ऐसा एक खत में लिखकर उसका वो आखिरी जवाब आया ।
जैसे बारिश के बाद गंगा किनारे सैलाब आया ।
वो कह के गयी थी आएगी मिलने ,
पर उसकी जगह उसका पैगाम आया ।
कल रास्तो पर चलते हुए किसी गाड़ी से टकरा गई थी वो ,
बेवफा नही थी किस्मत से हार गई थी वो !
पर मौत के बाद भी एक साया साथ होगा उसका ,
ऐसा एक खत में लिखकर उसका वो आखिरी जवाब आया ।
बनारस का इश्क़ बहुत बिख्यात है ,
जैसे गंगा और भोलेनाथ का नाम है !
मिलते तो नही है दोनों कही पर फिर भी रहते साथ है ,
ऐसे ही मेरी मोहब्बत दूर होकर भी मेरे पास है ।
कुछ ऐसे ही अमर मोहब्बतो का, शहर बनारस को मिला आशीर्वाद है ।
जैसे गंगा और भोलेनाथ का नाम है !
मिलते तो नही है दोनों कही पर फिर भी रहते साथ है ,
ऐसे ही मेरी मोहब्बत दूर होकर भी मेरे पास है ।
कुछ ऐसे ही अमर मोहब्बतो का, शहर बनारस को मिला आशीर्वाद है ।
#इश्क़_बनारस
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