आज है देश का हमारे हाल कुछ ऐसा ना है युवाओ के पास नौकरी ना है जेब मे पैसा फिर रहे है मारे ग्रेजुएट बेचारे ... फिर भी ना कोई बात करे ये मुद्दा है कैसा। टी.वी पर बैठ कर यू तो रोज़ मुँह फाड़ते है... बेरोजगारी पर बात करो तो ये नेता दूर भागते है। चुनाव से पहले तो लाख नौकरियां गिनाते है... जीत जाने के बाद कुर्सी, जो पुरानी नौकरी है वो भी छीन जाते है। ना जाने कब तक इस बेरोजगारी में मरना है... कभी तू भी कुछ कमाएगा ये सवाल अब तो हमारा घर भी पूछता है। घिस गयी चप्पलें जिस बाप की हमको पढ़ाने में, आज भी फ़टे कपड़ो में हमारे लिए अपने साहबो से सिफारिशें करता है। हर त्योहार के आने पर हम अंदर से थोड़े उदास हो जाते है जेब मे पैसे ना हो तो कहा किसी त्योहार पर नए कपड़े पहन पाते है। जिस माँ ने अपना पेट काट के हमे आजतक पाला है... उस माँ तक के लिए इस बेरोजगारी में हम कहा कभी कोई खुशी खरीद पाते है हर बार चुनते हम सरकार उनकी जो नौकरी दिलान